Wednesday, 14 November 2007

बोतल का नाच

Me: नशा शराब में होता तो नाचती बोतल


Achal:
जो होता नशा शराब में,
तो होते पड़े नशे में धुत्त बोतल के अशभूत,
कुछ इस कोने में तो कुछ उस कोने में,
फिर ना होती तुम्हारी बोतल और ना ही होता बोतल का नाच


Me:
जो न नाचे बोतल नशे में धुत्त
तो क्या उड़ के पहुंचे कोने कोने में अश्भूत
न बोतल नशे में, न नशा शराब में
ये तो ज़रिया है मिलाने का
इंसान को रूह-ओ-रुबाब में
जब खुश होता है बन्दा मेरा,
नाचता है लेकर हाथ में प्याला
जब होता है वो गम में चूर,
टूटे दिल जैसे टूटती है बोतल,
फैलते हैं कोने कोने में अश्भूत
इल्जाम फिर आता है शराब पर,
नहीं लगता तोहमत कोई क्यों
दिल तोड़ने वाले हुस्न-ए-शबाब पर


Achal:
मैंने जवाब तो न माँगा था
आपने दिया, आपकी रहमत है

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